साइबर वार : फेसबुक (facebook), ट्विट्टर (twitter) सोशल नेटवर्किंग और विश्व राजनैतिक (अमेरिकी) षड़यंत्र

Posted: April 25, 2011 in Children and Child Rights, Education, Geopolitics, Politics, Uncategorized, Youths and Nation


साइबर वार : फेसबुक, ट्विट्टर सोशल नेटवर्किंग और षड़यंत्र

क्या है वार यानि युद्ध  :
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शायद युद्ध के पारंपरिक  स्वरुप और वीभत्सता को हम सैन्य अभियानों के सन्दर्भ में देखते हैं.. उद्देश्य  लेकिन वर्तमान विश्व परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र और   विश्व-राजनैतिक शक्तियों के हस्तक्षेप और प्रभाव के चलते यह आसानी से संभव नहीं. इसीलिए अब युद्ध के पारंपरिक स्वरूपों की जगह परोक्ष युद्ध जैसे आर्थिक षड्यंत्रों, जैव नाभिकीय हमलों और साइबर युद्धों ने ले ली है.
क्या हैं साइबर  युद्ध:
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साइबर युद्ध का प्रमुख शिकार युवा वर्ग है, इसी युद्ध के पहले चरण में सेक्स और पोर्नोग्राफी का प्रयोग किया गया था. भारतीय परिवेश में इसके नतीजे बताने की जरुरत नहीं है… हाँ जो सामने आये हैं उनमे से एक दो गिनाये चलते हैं… 1, विद्यालयों में यौन शिक्षा की वकालत शुरू हो चुकी है. 2 . समलैंगिक संबंधों को क़ानूनी मान्यता मिल चुकी है. दोनों ही देश के लिए किस प्रकार लाभप्रद हैं बताना मुश्किल है. महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों और यौन उत्पीडन किसकी देन है.. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं.
आज विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी इन्टरनेट के माध्यम से  आवश्यक संदेशों और सूचनाओं का सम्प्रेषण करती है. अपना बहुत सा समय और संसाधन इन्टरनेट पर सोशल नेटवर्किंग साइटों पर खर्च करती है. इस इन्टरनेट पर हम  किसी न किसी रूप में अपना लगभग सारी सूचनाएं दे ही देते  है. अब यह एक गौर तलब तथ्य है कि इस प्रकार कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उद्देश्य क्या हैं? क्या देश कि एक बड़ी  आबादी कि मूलभूत व्यक्तिगत सूचनाओं  जैसे (पसंद, नापसंद, राजनैतिक दृष्टिकोण, धार्मिक प्रवृत्ति  आदि) का अंदाज़ा होने पर सामरिक और आर्थिक रूप से देश के विरुद्ध दोहन नहीं किया जा सकता?
9/11 के हमले के बाद  के बाद इस अमेरिकी और यूरोपियन ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इस  प्रकार के एक तंत्र की आवश्यकता महसूस की जिससे विश्व के  सभी  देश, काल, परिस्थितियों के लोगों की गतिविधियों और मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों पर नज़र रखा जा सके. इसी में चर्च के उद्देश्यों को समाहित कर लिया जाए तो धार्मिक उदारीकरण को बढ़ावा दिया जा सके (नतीजा आज इशु इन्टरनेट पर अपना विज्ञापन खुद करते नज़र आते हैं.). और भारत में तथाकथित उदार वर्ग धर्म परिवर्तनों को भी नज़र अंदाज़ करके ही चलता है.
गौरतलब है कि फेसबुक जैसे तमाम सोशल नेटवर्किंग साइटें  अमेरिकी गुप्तचर संस्था सी आई ए (CIA) का एक प्रोजेक्ट है जो कि विश्व समुदाय की सोच और  उसके सामरिक दोहन के लिए के लिए बनाया गया है… अरब और खाड़ी  देशों में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद है जहाँ मिस्र और ट्यूनीशिया में इन सोशल नेटवर्किंग वेसाइट्स के माध्यम से सी आई ए (CIA) और पश्चिमी आर्थिक शक्तियों ने  तथाकथित  क्रांति करवाई.. दूसरे इस्लामिक देशों में इस प्रोजेक्ट की सफलता जोरों पर है. गौरतलब है की ये इस्लामिक देश वे देश हैं जहाँ तेल जैसे प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता की वजह से शायद लोगों के लिए रोजी-रोटी की समस्या नगण्य है.
साइबर युद्ध के प्रत्यक्ष प्रभाव:
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१. आर्थिक दोहन:
1.माइक्रोसोफ्ट और इनके जैसे सूचना तकनीकी उद्योग के दैत्यों की रणनीति में आर्थिक हितलाभ के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम और दूसरी प्रणालियों और अनुप्रयोगों पर निर्भरता किसकी जेबें भरती हैं?
2. वायरस और एंटी-वायरस उद्योगों को बढ़ावा मिला गोपनीय सूचनाओं की चोरी (hacking) से. क्या इस हैकिंग  से देश के रक्षा प्रतिष्ठानों की सूचनाएं वास्तव में सुरक्षित हैं?
3. इन वायरस और एंटी-वायरस उद्योगों को जान बुझ कर बढ़ावा क्यों दिया गया? सिर्फ सामरिक और आर्थिक फायदे के लिए या  कोई  और वजह?.
4. जनसामान्य के समय और संसाधनों को बरबादी की दिशा और वजह देने के लिए. जैसे क्रिकेट का बुखार जनसामान्य की उत्पादकता को प्रभावित करता है उसी प्रकार सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स भी,
5. 4000 से ज्यादा  देशी-विदेशी नटवरलालों  का समूह मल्टी-लेवल मार्केटिंग कम्पनियाँ.
अप्रत्यक्ष प्रभाव:
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1. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा .
2. शैक्षिक गतिविधियों में पश्चिमी मानसिकता का बढ़ता प्रभाव… नतीजा मानसिक गुलामी.
3. मीडिया और उससे बनने वाली अंग्रेजी मानसिकता का प्रभाव (भारत में ही आर्थिक उदारीकरण की वकालत करते हुए करोड़ों मिल जायेंगे.)
4. चर्च के प्रभाव में धार्मिक स्वतंत्रता का छद्म हरण.. सभी धार्मिक कर्मकांडों (भले ही वे उसके वैज्ञानिक स्वरुप से वाकिफ न हों.) को दकियानूसी करार देते हुए युवा नए युग की शान हैं.
5. साइबर युद्ध का प्रमुख शिकार युवा वर्ग है, इसी युद्ध के पहले चरण में सेक्स और पोर्नोग्राफी का प्रयोग किया गया था.
6. सी आई ए (CIA) के सूचना खनन (data mining) के लिए. ताकि विश्व परिदृश्य में लोगों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जा सके.
7. व्यक्ति के सामाजिक स्वरुप की एकाकी अवधारणा… और सामाजिकता का बदलता स्वरुप सोशल नेटवर्किंग

ये है मूल उद्देश्य …

चीन को इसका अंदाज़ा है इसीलिए चीन ने इसको अपने यहाँ लागू नहीं होने दिया.
Comments
  1. sdtiwari says:

    This is very ridiculous and alarming. The time has come when all the members of these social networks must rethink about their membership. The members must depart from these sites.

    • Pratibha Bajpai says:

      राकेश आपने जो कुछ लिखा है उसमें से दो बातों को छोड़ कर बाकी सभी बातों से मैं सहमत हूं। जिस तरह समाज में बाल यौन शोषण की समस्याओं में वृद्धि हुई है उसे देखते हुए बच्चो को यौन शिक्षा का ज्ञान देना और शोषण होने की स्थिति में उससे प्रतिकार करने के तरीकों के बारे में बताना बेहद आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा के अभाव में कई बार वे यह ही नहीं समझ पाते कि उनके साथ हुआ क्या है या हो क्या रहा है। और क्या इस कुकृत्यी को सजा कैसे दिलायी जा सकती है। इन सभी बातों का ज्ञान बच्चों को होना ही चाहिए। हां, स्कूल की बजाय यह शिक्षा यदि उन्हें अपने घऱ में बड़ी बहन, भाभी या मां के द्वारा दी जाए, तो बेहतर होगा। रिश्तों में एक बॉन्डिग बनेगी और वे अपने मन की बात सहजता से कह पाएगें।
      दूसरी बात समलैंगिक संबंधों की तो ये भारत में नए नहीं है। सिर्फ मान्यता को लेकर विवाद जरूर है। मेरा तो यही मानना है कि यह एक बेहद निजी मामला है। हम और आप कौन होते है किसी के निजी मामलों दखलंदाजी करने वाले। इस देश ने हर व्यक्ति को अपने ढंग से ज़िंदगी जीने का अधिकरा दिया है, तो जीने दीजिए उन्हें अपने तरीके से।

      • प्रतिभा दी.. …इस विषय के खिलाफ मै कई दिनों तक बात कर सकता हूँ .. यदि आप भारत को भारत मान कर चलते हैं तो भारतीय संस्कृति के इतिहास में कोई एक ऐतिहासिक तथ्य बता दीजिये जहाँ आपने समलैंगिकता का जिक्र पाया हो ? और यदि लाखों सालों से हम सनातनी संस्कृति से ससम्मान जीते चले आ रहे हैं तो वर्तमान में अप्राकृतिक यौनाचार की वकालत क्यों ? … और जहाँ तक मानव जीवन की बात है … हमारे शास्त्रों में जीवन और “काम” की व्याख्या विश्व के किसी ग्रन्थ से कही ज्यादा उचित और वैज्ञानिक तरीके से की गयी है … वात्सायन ने भी पूरी कामसूत्र लिखी लेकिन उसमे कहीं भी समलैंगिकता की वकालत नहीं की है . और जिस यौन शिक्षा को आप घर के अन्दर की बात बता रही हैं वो शायद सांस्कृतिक परंपरा का एक हिस्सा है … स्कूलों में इसके प्रसार से क्या नतीजे हो सकते हैं … आप अंदाज़ा लगा सकती हैं … हो सकता है आप धार्मिक ग्रंथों और वेदों को अप्रमाणिक कह दें, लेकिन देश काल परिस्थितियों के मानव मष्तिष्क पर प्रभाव में प्रेरण और उद्दीपन के मनोविज्ञान के मुलभुत नियम को दरकिनार करके आप किस पैमाने से सामाजिकता का मूल्याङ्कन कर रही हैं?

  2. Ankit says:

    Can anyone provide refrence for some of the facts given in the blog like
    “गौरतलब है कि फेसबुक जैसे तमाम सोशल नेटवर्किंग साइटें अमेरिकी गुप्तचर संस्था सी आई ए (CIA) का एक प्रोजेक्ट है, ”

    and what part of indian population as of now is in reach of internet? 30%, 20% or 5% or maybe less then that?

  3. //“गौरतलब है कि फेसबुक जैसे तमाम सोशल नेटवर्किंग साइटें अमेरिकी गुप्तचर संस्था सी आई ए (CIA) का एक प्रोजेक्ट है, ”//..Haven’t you looked over the videos attached for your convenience… And if you concerned about the reach of the internet, its stats can be found easily by “googling”…. and the literate, enlightened and concerned youths from any location, cast or religion are familiar to internet.. and if you ask me about who bring the change anywhere… i’ll say the “youths” who r the target of this war.

  4. Rajat Pandey says:

    Its right. Every day I spend at least 1 hr for this …. what should we do??

  5. manoj kr. dixit says:

    Rakesh jee

    aapse Bilkul itefak rakhta hoo.

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